पिछले कुछ वर्षों से मैं लगातार मध्य प्रदेश में हुए "व्यापम घोटाले" को उजागर करता आ रहा हूँ। व्यापम घोटाला जिसने व्यावसायिक पाठ्यक्रमों की हजारों सीटों पर प्रवेश की चाह रखने वाले एक करोड़ से अधिक छात्रों तथा पटवारी से लेकर आरक्षक और शिक्षकों के पदों पर सरकारी नौकरी की चाह रखने वाले लाखों युवाओं के जीवन को झकझोर दिया है, उसकी ओर मीडिआ का समुचित ध्यान नहीं गया है।
लेकिन इस घोटाले के तथ्य स्पष्ट दिखाई दे रहे है। यह ऐसा बहुआयामी घोटाला है जिसमे आत्महत्या, जालसाजी, प्रतिरूपण, रिश्वतखोरी, धोखाधड़ी और पद के दुरुपयोग जैसे अपराध शामिल है। यह दिखाने के लिए दस्तावेजी रिकार्ड हैं कि भ्रष्ट गतिविधियों में राज्यपाल, मुख्यमंत्री एवं मंत्रियों के कार्यालय और उनके स्टाफ, आरएसएस के पदाधिकारी और निसंदेह भ्रष्ट अधिकारी लिप्त है जिन्होंने लगभग पूर्ण अपराध को घटित करने के लिए एक भ्रष्ट सिस्टम तैयार कर लिया।
स्पेशल टास्क फोर्स (एस.टी.एफ.) जो इस मामले की एकदम बेमन से जांच कर रही है, 1400 से अधिक व्यक्तियों को गिरफ्तार कर चुकी है। इनमे अधिकांश भोले-भाले छात्र और उनके माता-पिता है जिन्हे आरोपी बनाये जाने की बजाय अभियोजन पक्ष के गवाह बनाया जाना चाहिए था।
मुख्यमंत्री ने राज्य की विधानसभा के पटल पर स्वयं यह स्वीकार किया है कि 2007 के बाद राज्य सरकार द्वारा की गयी 147,000 भर्तियों में कम से कम 1000 नियुक्तियां अवश्य ही जालसाजी एवं गलत पहचान से हुयी है।
यहाँ यह कहना प्रासंगिक है कि हरियाणा के मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला को अनुचित तरीके से 300 शिक्षकों की भर्ती के लिए दोषी ठहराया जा चुका है।
मध्यप्रदेश पुलिस की एस.टी.एफ. के अधिकारी जिनकी गोपनीय चरित्रावली मुख्यमंत्री के द्वारा लिखी जाती है, वे मुख्यमंत्री की जांच कैसे कर सकते है? इसीलिए हम इस मामले में सी.बी.आई. जांच की मांग करते आ रहे है। दुर्भाग्यवश हमारी इस मांग को न्यायपालिका द्वारा बार-बार अस्वीकार कर दिया गया।
एस.टी.एफ. ने पहले दिन से ही अपनी जांच में अनेक छिद्र रख दिए ताकि अंतत: किसी को भी सजा न मिले। इस सम्पूर्ण मामले का आधार व्यापम के कर्मचारी नितिन महेन्द्रा से बरामद हुयी एक एक्सल शीट है। नितिन महेन्द्रा व्यापम के डायरेक्टर और परीक्षा नियंत्रक पंकज त्रिवेदी के साथ घोटाले का मुख्य सूत्रधार है। किन्तु पुलिस ने नितिन महेन्द्रा के लैपटॉप और डेस्कटॉप को जब्त नहीं किया। जब हमने इस मुद्दे को उठाया तो एस.टी.एफ. ने कूड़ेदान से एक लैपटॉप बरामद किया !
एस.टी.एफ. और मध्यप्रदेश पुलिस ने इसकी जब्त की गयी हार्ड डिस्क को गुजरात की सरकारी फोरेंसिक साइंस लेबोरेटरी को जांच के लिए बगैर उसकी हैश वैल्यू का उल्लेख किये भेज दिया। जबकि यदि इसे एक सबूत के रूप में स्वीकार किया जा रहा है तो उसकी हैश वैल्यू का उल्लेख करना आई.टी.एक्ट के तहत अनिवार्य है।
सीबीआई ने गुजरात सरकार की फोरेंसिक साइंस लैबोरेटरी पर छापा मारा था और इशरत जहाँ मामले में सबूतों से छेड़छाड़ करने के कारण उसके अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा चलाने की सिफारिश की थी। किन्तु तब गुजरात पुलिस ने कोई कार्यवाही नहीं की। वे करते भी क्यों?
मध्यप्रदेश पुलिस द्वारा इसकी जांच के लिए एक संदिग्ध रिकार्ड वाली फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला का चुनाव करना भी संदेह को जन्म देता है। क्यों उन्होंने राष्ट्रीय फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला चंडीगढ़ या हैदराबाद का चयन नहीं किया?
एस.टी.एफ. भी यह तय करने में बड़ी चयनात्मक रही है कि किसे आरोपी बनाना है, किसे गवाह बनाना है और किसे छोड़ना है !
व्यापम (व्यावसायिक परीक्षा मंडल) जो कि इस व्यापक घोटाले के लिए जिम्मेदार संगठन है, के ही वकील को उसी एस.टी.एफ. का वकील भी नियुक्त कर दिया गया जो कि अभियोजन पक्ष की जांच एजेंसी है!
इस कहानी को हम आगे समझें, इसके पूर्व हम इसकी पृष्ठभूमि को सिलसिलेवार समझ लेते है। व्यापम (Vya-PA-M), व्यावसायिक परीक्षा मंडल- अर्थात प्रोफेशनल एग्जामिनेशन बोर्ड का संक्षिप्त नाम है जो मध्यप्रदेश शासन के तकनीकी शिक्षा संचालनालय के अंतर्गत एक स्व-वित्तपोषित स्वायत्त संस्था है। इसकी स्थापना वर्ष 1970 में मूलतः एमबीबीएस पाठ्यक्रम में प्रवेश के लिए प्री-मेडिकल टेस्ट जैसी प्रवेश परीक्षा आयोजित करने के लिए की गयी। बरसों में समय के साथ-साथ इसका दायरा भी बढ़ता जा रहा है।
पहले इसने अन्य पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए प्रवेश पूर्व परीक्षाओं का आयोजन शुरू किया और उसके बाद (जब वह घोटालों की तकनीक में दक्ष हो गया) 2007 में भाजपा सरकार ने व्यापम को विभिन्न सरकारी नौकरियों यथा- आरक्षकों, नर्सों, शिक्षकों, पुलिस उप निरीक्षकों और सभी अराजपत्रित पदों पर भर्ती का काम भी व्यापम को सौंपा दिया।
जैसा कि एसटीएफ ने बताया, इस घोटाले को त्रि-आयामी ढंग से अंजाम दिया गया है।
एक बेहतर योग्य व्यक्ति मुन्नाभाई के अंदाज में किसी अन्य व्यक्ति के लिए परीक्षा देता है। आई.डी.कार्ड पर फोटो स्वयं का होता है किन्तु उस पर अन्य विवरण (नाम आदि) उस व्यक्ति का होता है जो बगैर परीक्षा में बैठे पास होना चाहता है, और फोटो को बाद में बदल दिया जाता है।
हॉल में बैठने की व्यवस्था रेलगाड़ी के इंजन और डिब्बों की भांति इस चालाकी के साथ जमायी जाती है कि जिन उम्मीदवारों को पास करवाना है वे प्रश्नों के सही जवाब की नक़ल एक-दूसरे से कर सकें।
पास किये जाने वाले उम्मीदवारों की ओएमआर शीट वास्तविक परीक्षा के दौरान खाली छोड़ दी जाती है, और फिर सही जवाब अंकन के लिए उम्मीदवारों को बाद में उपलब्ध करा दी जाती है।
यह भी बताया जाना जरुरी है कि विविध परीक्षाओं में इस तरह के उम्मीदवारों को बड़ी संख्या में लाभ पंहुचाने के लिए घोटालेबाजों पर इतना दबाव होता था कि वे उम्मीदवारों और उनके संरक्षक सिफरिशकर्ताओं का समुचित लेख-जोखा रखें। इसलिए उन्हें प्रासंगिक तथ्यों के साथ एक विस्तृत एक्सेल शीट बनानी पड़ी। इस एक्सेल शीट की जानकारियों के आंशिक रूप से प्रकट हो जाने पर ही हमें पता चला कि मुख्यमंत्री, राज्यपाल, मंत्रीगण एवं आर.एस.एस. के पदाधिकारीगण विभिन्न उम्मीदवारों के लिए संरक्षक और सिफारिशकर्ता थे।
एस.टी.एफ. द्वारा जो कुछ भी आधी-अधूरी जांच की गयी है, उससे दो अकाट्य तथ्य उभरते है- प्रथम यह कि भर्ती और प्रवेश की व्यवस्था में 2007 और उसके आगे से भ्रष्टाचार हुआ , और मुख्यमंत्री न सिर्फ इसके बारे में जानते थे बल्कि इसमें खुद सम्मिलित भी थे।
यदि हम 1,40,000 से अधिक भर्तियों और 2000 से अधिक प्री और पोस्ट ग्रेजुएट मेडिकल प्रवेश का हिसाब करे तो मध्यप्रदेश में आज के प्रचलित रेट से (5 लाख से 1 करोड़ तक) आप घोटाले के परिमाण की कल्पना कर सकते है।
विधानसभा के पटल पर मुख्यमंत्री स्वीकार कर चुके है कि व्यापम के माध्यम से हुयी भर्तियों में 1000 से अधिक अवैध नियुक्तियां हुयी है। और इसके बाद मंत्रिमंडल ने बेशर्मी से यह निर्णय ले लिया कि सरकारी नौकरियों में भविष्य में होने वाली सभी प्रकाार की भर्ती व्यापम के माध्यम से की जाएगी !
दिल्ली उच्च न्यायलय ने इस मामले को उजागर करने वाले एक बाहरी व्यक्ति को पुलिस संरक्षण देने का आदेश दिया है क्योंकि उसकी जान को खतरा है। मुख्यमंत्री के अपराध को सिद्ध करने के लिए और क्या शेष बचा है?
आंकड़ों की दृष्टि से 1,47,000 में से 1000 काफी कम है। किन्तु यह निर्णायक सबूत है कि एक व्यवस्था दूषित और भ्रष्ट हो गयी है। और मुख्यमंत्री स्वयं इस व्यवस्था का संचालन कर रहे है। इसके परिणाम अवश्यम्भावी है। भविष्य में व्यापम द्वारा आयोजित सभी भर्ती और प्रवेश परीक्षाये संदिग्ध बनी रहेगी।
इसका मतलब यह है कि छात्रों और नौकरी चाहने वालों का भविष्य अन्धकार में है। शिवराज सिंह चौहान के अधीन उनकी सरकार के नैतिक और राजनैतिक अधिकारों के पतन हो जाने के अतिरिक्त इस समस्या का एक मानवीय पहलू भी है। क्या भाजपा इस पर अब कोई कार्यवाई करेगी?
माननीय प्रधामंत्री जी, आपने, भ्रष्टाचार के विरुद्ध कार्यवाई करने का वादा किया था। क्या अब आप वह कार्यवाई करेंगे?
मोहन भागवत जी, क्या आप संघ के कार्यकर्ताओं के भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई कलिखें…