मुलायम राजनीति के माहिर खिलाड़ी हैं, तो अखिलेश अभी उतर प्रदेश में मार्क्स लीडर की भूमिका में है ? मुलायम सिंह यादव पहलवान रहे हैं, वो धोबी पछाड़ के माहिर रहे हैं, ये बात राजनीति समझने वाला हर आदमी जानता है. 1979 में वो जब विधायक बने थे तब से लेकर 1992 तक कई बारीक़ियाँ सिखकर बेनीप्रसाद वर्मा के साथ पार्टी बनाई. फिर बसपा के साथ मिलकर मुख्यमंत्री बने, फिर वो चर्चित गेस्टहाउस कांड जिसके बाद वो एक गुंडा पार्टी के नेता के तौर पर जाने गए. . 2006-07 जब लेफ्ट से सरकार गिराने का वादा करके यूपीए सरकार के साथ खड़े दिखे नेता जी. फिर एक बार फिर से 2013 में राष्ट्रपति चुनावों में ममता बनर्जी को धोखा दिया, जब वादे के खिलाफ जाकर प्रणब दा को समर्थन किया. कहते हैं क़ि मुलायम सिंह यादव वो नेता हैं जो राजनीतिक महत्वाकांक्षा के लिए कुछ भी कर जाते हैं, वो अपने उन दुश्मनों को फिर से पार्टी में ले लेते हैं जिन्होने उनपर कभी गोली चलवाई थी. राजा भैया, बेनी प्रसाद, आज़म ख़ान, अमर सिंह, अजीत सिंह, इमामबुखारी और धार्मिक नेताओं के साथ उनके रिश्ते बनते बिगड़ते रहे हैं. तो अखिलेश युवा होने के कारण मोदी के पसंदीदा मुख्यमंत्री है ? . अखिलेश हर बात को दिल पर ले लेते हैं,? जबकि मुलायम राजनीति के माहिर खिलाड़ी हैं, तो अखिलेश भी कम नही आवश्यकता पड़ने पर अपने राजनीतिक अस्तित्व के लिए चुनाव के बाद बीजेपी की बेसाखी थामने में देर नही करेगे ?
Thursday 27 October 2016
Wednesday 19 October 2016
समय की पुकार है नई क्रान्ति का शंखनाद है ?
// कड़वा सच // ? आज देश में हर सेक्टर में घटती नोकरियों की समस्या विकराल होती जा रही है ? कम्पनी में फ्यूचर की कोई उम्मीद नही है ? कोई इंक्रीमेंट नही कास्ट कटिंग और भारी कॉम्पटीशन के चलते घटते प्रॉफिट आफ मार्जिन के कारण सम्भव नही की कम्पनियां बेहतर सैलेरी दे पाए। और अगर अनियोजित क्षेत्र को लो तो बहुत हालात खराब है। छोटी छोटी कम्पनियों में, दुकानों, पर काम करने वाले माल के कर्मचारियों ,निजी स्कूलों के टीचर,,कमर्सियल सेक्टर में ,हालात बहुत खराब 5 हजार से 10 हजार तक मिलते हैं।आखिर कैसे जिए इंसान कैसे परिवार चालाए फ्यूचर प्लानिग क्या ख़ाक किया जाया ? रेहड़ी वाले,खोमचे ठेले वाले,सब्जी वाले,रिक्सा पुलर,ड्रायवर मिस्त्री कारीगर मजदुर तो बढ़ती मंहगाई से खुद भी मंहगे हो जाते और सरकारी खेरात के इनके लिए द्वार खुल जाते ? लेकिन अनियोजित क्षेत्र // प्रायवेट नोकरी// वाले कितनी जद्दो जहद कर रहे जीने के लिए ? जब हम देखते हैं सरकारी कर्मचारियों लगातार उत्तरोत्तर बढ़ोतरी के साथ पेंशन का लाभ मिल रहा है आखिर ये विसंगति क्यों ? सरकार को चाहिए की देश के प्रत्येक नागरिक को ६० साल की उम्र के बाद उसे सरकार पर आश्रित मान जैसे साशकीय कर्मचारियो अफसर,पुलिस कलेक्टर से लेकर चपरासी,नेता,मंत्री हर आश्रित व्यक्ति को जितना व्यक्ति को जीवन यापन हेतु लगता है उतनी एक सामान सब को पेंशन दे ? क्योकि जब व्यक्ति सेवा में था उसकी जितनी योग्यता का दोहन सरकार ने किया उतना भुगतान सेवाकाल में उसने प्राप्त कर लिया? अब आश्रय निधि तो हर आश्रित को सामान मिलना चाहिए यही सामाजिक न्याय है ? समय की पुकार है नई क्रान्ति का शंखनाद है ?जिसमे दलित मुस्लिम सवर्ण हिन्दू सब साथ है ? बहुत सह लिया अब नही होने देगे आने वाली पीढ़ी के साथ ये अत्याचार है ? ?
कम्पनीयो में फ्यूचर की कोई उम्मीद नही है ?
// कड़वा सच // ? आज देश में हर सेक्टर में घटती नोकरियों की समस्या विकराल होती जा रही है ? कम्पनीयो में फ्यूचर की कोई उम्मीद नही है ? कोई इंक्रीमेंट नही कास्ट कटिंग और भारी कॉम्पटीशन के चलते घटते प्रॉफिट आफ मार्जिन के कारण सम्भव नही की कम्पनियां बेहतर सैलेरी दे पाए। और अगर अनियोजित क्षेत्र को लो तो बहुत हालात खराब है। छोटी छोटी कम्पनियों में, दुकानों, पर काम करने वाले माल के कर्मचारियों ,निजी स्कूलों के टीचर,,कमर्सियल सेक्टर में ,हालात बहुत खराब 5 हजार से 10 हजार तक मिलते हैं।आखिर कैसे जिए इंसान कैसे परिवार चालाए फ्यूचर प्लानिग क्या ख़ाक किया जाया ?।रेहड़ी वाले,खोमचे ठेले वाले,सब्जी वाले,रिक्सा पुलर,ड्रायवर मिस्त्री कारीगर मजदुर तो बढ़ती मंहगाई से खुद भी मंहगे हो जाते लेकिन अनियोजित क्षेत्र // प्रायवेट नोकरी// वाले कितनी जद्दो जहद कर रहे जीने के लिए ? जब हम देखते हैं सरकारी कर्मचारियों को लगातार पेंशन का उतरोतर बढ़ोतरी के साथ लाभ मिल रहा है। तो आखिर ये भेदभाव क्यों ?सरकार को चाहिए की देश के प्रत्येक नागरिक को ६० साल की उम्र के बाद उसे सरकार पर आश्रित मान जैसे साशकीय कर्मचारियो अफसर,पुलिस कलेक्टर से लेकर चपरासी,नेता,मंत्री हर आश्रित व्यक्ति को जितना व्यक्ति को जीवन यापन हेतु लगता है उतनी एक सामान सब को पेंशन दे ? क्योकि जब व्यक्ति सेवा में था उसकी जितनी योग्यता का दोहन सरकार ने किया उतना भुगतान सेवाकाल में उसने प्राप्त कर लिया? अब आश्रय निधि तो हर आश्रित को सामान मिलना चाहिए यही सामाजिक न्याय है ?
Sunday 16 October 2016
ये राजनीती नही ? धर्मनिरपेक्षता के साथ बालात्कार है ?
सुब्रमण्यम स्वामी की पुत्री ने मुस्लिम से शादी की है सुहासिनी हैदर हो गयी ? बेटी का वैवाहिक जीवन बचाने के प्रयास में सारे देश में साम्प्रदायिकता का जहर फैला रहे / सुप्रीम कोर्ट को अपना काम करने दो फैसला आया नही कानून अभी बना नही तुम थोपने आ गये ? तुम बिच में बोलंने वाले कौन एक पीड़ित बेटी के बाप खुलकर सच बोलो की मेरी बेटी को हैदर तीन बार तलाक बोलकर दूसरी शादी कर रहा ? तो लव जिहाद वालो के पास जाओ उसकी घर वापसी कराओ ? सारे देश में साम्प्रदायिक उन्माद मत फैलाव ? न्यायपालिका पर साम्प्रदायिक दबाव बनाने का घृणित कुत्य मत करो ? ये राजनीती नही ? धर्मनिरपेक्षता के साथ बालात्कार है ?
Thursday 13 October 2016
// गुडगवर्नेस याने अच्छा चुस्त दुरुस्त प्रसाशन ?//
// गुडगवर्नेस याने अच्छा चुस्त दुरुस्त प्रसाशन ?//
गुडगवर्नेस का वादा करने वाली सरकार में आज भी कई अनगिनत विसंगतिया पूर्ण नीतियां चली आ रही है जो आम आदमी को बेवकूफ बना लूट रही है / अब दवाई कंपनियों को ही ले सरकार ने उन्हें अपने प्रोडक्शन की मन चाही कीमत निर्धारित करने की छूट दे रखी है / कंपनियां ५० से ६० परसेंट बढ़ाकर कीमत प्रिंट करती है ? क्योकि शासकीय अस्पताल में दवाई सप्लाय के टेंडर की शर्त रहती है की प्रिंट कीमत से कितना अधिक डिस्काउंट जो कंपनी दे वही सप्लाय करे अत: कंपनियां द्वारा इतनी बड़ी हुई कीमत प्रिंट की जाती / लेकिन खुले बाजार में प्रिंट कीमत पर बेचीं जाती है ? जो जानते है मोलभाव करने में एक्सपर्ट वो 30 डिस्काउंट ले लेते / लेकिन बाकी आम आदमी तो इतनी ऊँची कीमत पर दवाई लेने को मजबूर है / और अधिकतर तो अपनों की पीड़ा से पीड़ित ग्राहक पूछता भी नही न कीमत पड़ता है ? दवाई कंपनियों को कंट्रोल करने का काम ड्रग कंट्रोलर का है लेकिन आज तक आवाम के सामने एक भी बार यह विभाग अपनी उपस्तिथि भी नही दर्ज करा सका है ?
गुडगवर्नेस का वादा करने वाली सरकार में आज भी कई अनगिनत विसंगतिया पूर्ण नीतियां चली आ रही है जो आम आदमी को बेवकूफ बना लूट रही है / अब दवाई कंपनियों को ही ले सरकार ने उन्हें अपने प्रोडक्शन की मन चाही कीमत निर्धारित करने की छूट दे रखी है / कंपनियां ५० से ६० परसेंट बढ़ाकर कीमत प्रिंट करती है ? क्योकि शासकीय अस्पताल में दवाई सप्लाय के टेंडर की शर्त रहती है की प्रिंट कीमत से कितना अधिक डिस्काउंट जो कंपनी दे वही सप्लाय करे अत: कंपनियां द्वारा इतनी बड़ी हुई कीमत प्रिंट की जाती / लेकिन खुले बाजार में प्रिंट कीमत पर बेचीं जाती है ? जो जानते है मोलभाव करने में एक्सपर्ट वो 30 डिस्काउंट ले लेते / लेकिन बाकी आम आदमी तो इतनी ऊँची कीमत पर दवाई लेने को मजबूर है / और अधिकतर तो अपनों की पीड़ा से पीड़ित ग्राहक पूछता भी नही न कीमत पड़ता है ? दवाई कंपनियों को कंट्रोल करने का काम ड्रग कंट्रोलर का है लेकिन आज तक आवाम के सामने एक भी बार यह विभाग अपनी उपस्तिथि भी नही दर्ज करा सका है ?
Tuesday 11 October 2016
/// शिवराज मामा इनका भी सोचो ? //
// कड़वा सच ?/// शिवराज मामा इनका भी सोचो ? //
पुनः पेशन प्रदान करने की घोषणा शासकीय कर्मचारियों के लिये हमदर्दी की अच्छी बात है लेकिन में मामाजी का ध्यान नोजवान भारत की आने वाली पीढ़ी जो ज्यातर सेल्फ़ एम्प्लाई या प्रायवेट जॉब करते रिटायर्ड या डिसएबल होने पर उन्हें कोई सहायता नही मिलती और आजकल इतनी महंगाई है की तनख्वाह तो पहले ही कम पड़ती है भविष्य का प्लानिग कैसे हो ? पेंशन के आकर्षण के कारण ही सरकारी नोकरियो की इतनी मारा मारी है जो मिलती ही नही आरक्षण के मन मुटाव में भी मूल कारण यही है अत: क्यों न ?
प्रदेश स्तर पर एक निश्चित उम्र के बाद सरकार प्रत्येक व्यक्ति के भरण पोषण की जिम्मेदारी ले उसके पोषण के लिये जितना व्यय लगता उसे दिया जाए फिर चाहे वो अपने जीवन में कलेक्टर हो मिनिस्टर हो ड्राइवर या चपरासी ? भरण पोषण तो सब को सामान ही लगेगा क्योकि जब व्यक्ति की प्रतिभा और क्षमता का दोहन किया गया तब उसे उसका पूरा पारिश्रमिक दिया गया है / अब ये पेंशन जो है आश्रय निधि है और हर आश्रित को बराबर मिलना चाहिये ? यही सामाजिक न्याय है
पुनः पेशन प्रदान करने की घोषणा शासकीय कर्मचारियों के लिये हमदर्दी की अच्छी बात है लेकिन में मामाजी का ध्यान नोजवान भारत की आने वाली पीढ़ी जो ज्यातर सेल्फ़ एम्प्लाई या प्रायवेट जॉब करते रिटायर्ड या डिसएबल होने पर उन्हें कोई सहायता नही मिलती और आजकल इतनी महंगाई है की तनख्वाह तो पहले ही कम पड़ती है भविष्य का प्लानिग कैसे हो ? पेंशन के आकर्षण के कारण ही सरकारी नोकरियो की इतनी मारा मारी है जो मिलती ही नही आरक्षण के मन मुटाव में भी मूल कारण यही है अत: क्यों न ?
प्रदेश स्तर पर एक निश्चित उम्र के बाद सरकार प्रत्येक व्यक्ति के भरण पोषण की जिम्मेदारी ले उसके पोषण के लिये जितना व्यय लगता उसे दिया जाए फिर चाहे वो अपने जीवन में कलेक्टर हो मिनिस्टर हो ड्राइवर या चपरासी ? भरण पोषण तो सब को सामान ही लगेगा क्योकि जब व्यक्ति की प्रतिभा और क्षमता का दोहन किया गया तब उसे उसका पूरा पारिश्रमिक दिया गया है / अब ये पेंशन जो है आश्रय निधि है और हर आश्रित को बराबर मिलना चाहिये ? यही सामाजिक न्याय है
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