आरक्षण एक अस्थाई व्यवस्था थी समय की मजबूरी थी क्योकि मुस्लिमो की तरह दलितों के लिए
भी अलग राष्ट्र की मांग उठ रही थी ! और मुस्लिमो से सामना करने को दलितों का साथ तब भीं
जरूरी था आज भी जरूरी है ! यदि आरक्षण का प्रलोभन न देते तो ये धर्म परिवर्तन कर लेते ऐसे में हिन्दुओ का अस्तित्व संकट में पड़ सकता था पड़ सकता है ! अत: आरक्षण हमारी नियति बन
चुका है इसे सहर्ष स्वीकारना हमारी मजबूरी है ! वरना साम्प्रदायिक तनाव के वातावरण से जूझ
रहे देश को वर्ग संघर्ष की आग में धकेलना समय और परिस्थिती के अनुसार उचित नही !
अत: आरक्षण समाप्त करने की बजाय आरक्षण आर्थिक आधार पर निधारित करने की मांग
उठाना श्रेयस्कर होगा !
कड़वा सच !
भी अलग राष्ट्र की मांग उठ रही थी ! और मुस्लिमो से सामना करने को दलितों का साथ तब भीं
जरूरी था आज भी जरूरी है ! यदि आरक्षण का प्रलोभन न देते तो ये धर्म परिवर्तन कर लेते ऐसे में हिन्दुओ का अस्तित्व संकट में पड़ सकता था पड़ सकता है ! अत: आरक्षण हमारी नियति बन
चुका है इसे सहर्ष स्वीकारना हमारी मजबूरी है ! वरना साम्प्रदायिक तनाव के वातावरण से जूझ
रहे देश को वर्ग संघर्ष की आग में धकेलना समय और परिस्थिती के अनुसार उचित नही !
अत: आरक्षण समाप्त करने की बजाय आरक्षण आर्थिक आधार पर निधारित करने की मांग
उठाना श्रेयस्कर होगा !
कड़वा सच !