नोट बन्दी करने का सबसे सॉलिड कारण जो गिनाया गया था वह यह था, कि अर्थ व्यवस्था में कैश की तादाद काफी ज्यादा हो गयी हैं , यह खतरनाक स्तर तक बढ़ गया है , अत: नोट बन्दी कर कैश लेस अर्थ व्यवस्था की तरफ जाना जरुरी है , लेकिन नोट बन्दी को दो साल भी पूरे नही हुए है, ओर कैश का फ्लो नोट बन्दी के पहले से भी बहुत आगे बढ़ गया है ! अब सवाल यह खड़ा होता हैं कि नोट बंदी के समय सिस्टम में सिर्फ 7.8 लाख करोड़ की मुद्रा चलन में थी , और आज लगभग 19 लाख करोड़ की मुद्रा चलन में आ चुकी है ! ऋण देने को लेकर बैंकों की चिंताएं बढ़ रही हैं ,और तरलता के कड़े हालात को लेकर चिंता का माहौल हैं ! डिजिटल पेमेंट भी काफी बढ़े हैं ? तो यह सारी मुद्रा कहा चली गयी हैं , क्या सारी मुद्रा फिर ब्लैक मनी में तो नही बदल रही हैं !
Friday 28 September 2018
'' मोदी के विकल्प के रूप में गडकरी का नाम '' !
राष्ट्रीय सेवक संघ कभी व्यक्तिवादी नहीं रहा न किसी व्यक्ति पर कभी निर्भर
होगा , वो एक विचार धारा है ! और इसीलिए , मोदी की व्यक्तिवादी राजनीती ,
कारपोरेट जगत से गहरी दोस्ती संघ को रास नहीं आ रही , अपने राजनैतिक
अंहकार के चलते जिस तरह मोदी ने एक और शिवसेना , अकाली ,नितीश से पल्ला
झाड़ना शुरू किया वही दूसरी और संघ के अनुवांशिक संगठनों विश्वहिंदू परिषद ,
स्वदेशी मंच , वनवासी आश्रम ,बजरंग दल संस्कार भारती , कॉमन सिविल
कोर्ट , हिन्दू राष्ट्रवाद ,आदि को लूप लाइन में डाल कमजोर कर दिया ! वो
समय दूर नहीं जब मोदी अपनी लोकप्रियता के बल पर , देश के अन्य राजनैतिक
दलों केसाथ साथ आर एस,एस के लिए भी चुनौती न बन जाये,और अमित शाह की
प्रलोभनकारी राजनीती की चासनी संघ के स्वयं सेवको को आदर्श , राजनैतिक
शुचिता सस्कार , निष्ठां हिन्दू राष्ट्रवाद ,देश प्रेम से दूर व्यक्तिवाद के करीब ले जाय ?
इसलिये भावी नेतृत्व हेतु ,नितिन गडकरी को आगे बढ़ाने की आवश्यकता है ?
Monday 10 September 2018
महंगाई की सारे भारत मे हा हा कार ।। शर्मिंदगी तो महसूस करो यार ।। वरना कहना पड़ेगा बेशर्म है ये सरकार ।।
कितने शर्म की बात है कि सारे देश का आम आवाम मंहगाई की मार से हां हां कार कर रहा ,वहां सरकार के जवाबदारों को कुर्सी के गणित और वोटो की गिनती के अलावा कुछ दिखाई नहीं दे रहा ! भाजपा कार्यकारिणी की बैठक में अहंकार पूर्ण लहजे में खाली गठबंधन की बात की गयी , गठबंधन चलेगा नहीं, टिकेगा नहीं.!. आज तक सत्ता में जो पार्टी होती है वो कार्यकारिणी में चिंता करती है कि देश में आर्थिक रूप से क्या हालात हैं, सामाजिक रूप से क्या हालात हैं, क्या हालात हैं महंगाई के, क्या-क्या समस्याएँ जनता की है, क़ानून व्यवस्था कैसी है। कार्यकारिणी की बैठक में इन मुद्दों पर चर्चा होती है , अपने चुनावी घोषणा पत्र का मिलान करो। लेकिन सत्ताधारी पार्टी बीजेपी को येन केन प्रकारेण दलित वोट बैंक की चिंता है।
इसलिये कहना पड़ेगा सरकार बेशर्म हो गयी !
इसलिये कहना पड़ेगा सरकार बेशर्म हो गयी !
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