Tuesday 29 September 2015

हाथ धो के पीछे पड़ जाने वाले नेताजी नही रहे !

स्वर्गीय  रामप्रसादजी    दुबे  को  उनके  हम उम्र  समाज के  साथी  नेताजी  कहा  करते थे  ! मुझे छोटी  उम्र में  ही  अपने    मामा   से  सामाजिक  राजनैतिक   गतिविधियों  में  मतभिन्नता  के  चलते  बहस  और  जिद्दोजहद  करना  पड़ती ! हांलाकि  में  अपने आप में  मानता हूँ  की   में   अच्छे  से  कनविंस  करा
सकता हूँ   ! लेकीन   उनको नही   करा  पाता  और  धर्मशाला  के एक मात्र  पक्के  हाल  में  मामा  भांजे की  आवाज की  गूंज  सारा  मोहल्ला   सुनता  जब  ये  बात  लगातार  मेरी  माँ   और  रामप्रसादजी   की  बहन  ने  सुनी  तो   आक्रोशित  हो   हम  दोनों से  बोली  तुम  लोगो की  चिल्ला चोट से  मुझे  शर्म  आती है  ! तब  मामा  साहब  ने  कहा  था  समाज की  जाजम की  बात  समाज  की  जाजम  तक   घर  परिवार में ईस  पर कोई चर्चा  कभी नही करना  ! मेने   वो   बात  गांठ  बाँध ली  इसी  लिये  आज  खुश  हूँ  वरना  मेरा तो  सब कुछ  बिखर  जाता  जो  में  समाज की बात  घर  परिवार में लाता ! मामा  साहब  कहा  करते थे  समाज में  स्थान  पाने  के लिये  भीटी  मारना पड़ेगी  ! उन्होंने भी  छोटी उम्र में  बिछायत दार  मार्तण्डराव  चौधरी  को भीटी  मारकर  अध्यक्ष  बने  और उस  धर्मशाला  के  कच्चे  खंडहर  में  भवन  बनाकर  स्कुल  किराये पर दिया  !  समाज  को  आमदनी  का जरिया  उस समय  यह  बड़ी  गौरव  की  बात हुई थी ! उनका   नारा था  साफ़  बोलो  सुखी
रहो  !   इसीलिये   किसी  के सामने  कभी  भी  बात करने से  हिचकिचाते  नही थे ! यदि कोई काम  आपके
सुपुर्द   है  तो  हाथ धो के  आपके पीछे  पड़  जायेगे  ! बड़े  बड़े  साक्षी  इस   बात के    मौजूद  है  ! 
आज  राजकीय  सामान  के साथ  उनकी   अन्तेश्ठी   ने   समाज का   गौरव  बढ़ाया  ! समाज को   अपने  कार्यो से गौरान्वित  करने  वाले मामा  को  शत शत  नमन  !       

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