Friday 6 May 2016

रामघाट पर अमृत मंथन !

 कड़वा सच ! रामघाट पर अमृत मंथन
सिंहस्थ मै साधू संतो के लिए ही अमृत स्नान का विधान था और इसके भी केवल वे ही साधू संत नागा अधोरी ब्रह्मचारी कर्मकांडी तांत्रिक वैदिक पूजा पाठी अधिकारी होते है ! ये कोइ पाप नशनि गंगा थोड़े हैजो  डुबकी  लगा पाप धूल जाये ! सिंहस्थ स्नान अमृत स्नान उसके पात्र लोगो के काम का है ! जमाने भर के व्यभिचारी माँसाहारी ढोंगी जिन्हे न पवित्रता ज्ञान न स्वछता का ध्यान स्त्री पुरुष किन्नर स्नान करें तो उन्हें कोई अमृत स्नान का पूण्य थोड़े मिलता  क्योकि  ये  इसके  पात्र नहीं ! लेकिन ये सब असहनीय होने से  रुष्ट देवताओ ने रामघाट को भ्रष्ट कर निषेध कर दिया ड्रेनेज का पानी मिल जाने के बाद अब ये स्थान हमेशा अमृत स्नान के लिए निषेध है ! शास्त्रों मे पड़ा है रक्त की एक बून्द टपका कर हजारो वर्षो से किये जा रहे यज्ञ अनुष्ठान भ्रष्ट हो जाते ! तभी राम ने  असुरो  का संहार किया था   ! तो ये तो सारी शिप्रा भ्रष्ट   हो गयी ! अब इसमें धार्मिक मान्यताओं के अनुरुप तो स्नान वर्जित है ! इसलिये उज्जैन का सिंहस्थ समाप्त हो जाना चाहिए !  क्योकि ऐसे भी  यहाँ  अब कटाचुर साधू है कहाः जो वर्षो हिमालय की कंदराओं में रहते तपस्या करते अब तो वेशिक युग की दुकाने है संतो का कारोबार वैभव अहंकार पहले के संत अपनी आध्यात्मिक शक्ति अपनी तपस्या के तेज से दर्शन करने मात्र से कल्याण हो जाता था ! क्योकि कल्याण के लिए आम आदमी तो तपस्या नहीं कर सकता तो उसका कल्याण कैसे हो तो सिंहस्थ का विधान बनाया  संत महात्मा लोक कल्याण की भावना से सिंहस्थ में आते थे !  अब सरकार पर अहसान करने  आते है !  और आम जनता को दर्शन क्या दे मुख्य मंत्री  से रोज   रोज के जलसे करोड़पति भक्तो और उनके  व् स्वयं के लिए बने एअर कंडीशन आलिशान रिसोर्ट और उनका प्रोटोकॉल आम आदमी  तो  दर्शन पा ही  नहीं  सकता ! और वे जानते है की आम आदमी उनका वैभव देख नत मस्तक हो जाएगा जिसका प्रदर्शन किया जा रहा है ! लेकिन ये महांकाल को पसंद नहीं आ रहा है अल्टीमेटम दे दिया सुधर जाओ वरना हाँ फिर ..........! जय महाकाल !

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