व्यक्ति स्नेह त्याग समर्पण और सद्भावना के अतिरेक में अपना प्रभाव तक का परित्याग कर थोड़ी देर के लिये देवता तुल्य हो जाता है ? और नई पीढ़ी को जिम्मेदारी देकर आगे आने का रास्ता देने के बाद उनकी प्रतिभा और सफलता से उद्धेलित और असुरषा की भावना से मन ग्रसित करने लगता है ? ऐसी विचलित स्थिति में अपने अहंकार के वशीभूत हो वो रास्ते में काँटे बिछाकर अपने देवत्व तो क्या वो अपनी इंसानियत भी खो देता है ? जैसा मिस्त्री के साथ टाटा ने और अखिलेश के साथ मुलायमसिह ने किया / ओरो ने भी देश काल परिस्तिथियो के अनुसार तुम्हारे हमारे साथ भी किया ??????????
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