Monday 12 March 2018

अब पी आर एजेंसिया ही लोकतंत्र की दशा और दिशा तय कर रही हैं ?

क्या सोशल मीडिया वाकई में इतना महत्वपूर्ण हो गया है, कि  उस पर इतने ज्यादा पैसे खर्च कर राजनीतिक दल अपनी हवा बनाने और विपक्षियों की हवा खराब करने में यकीन रखते है  , अब आप देखिए कितना  आसान  है  सोशल मीडिया में आपको जो लिखना है लिख कर , जिसका भी चरित्र हनन करना हो  या किसी  धर्म को नीचा दिखाना हो कितनी आसानी से यह सब किया जा सकता है, / आप यदि सोच रहे हैं कि दल सिर्फ चुनाव जीतने के लिए इतनी मेहनत कर रहे है तो आप गलत सोच रहे है यह एक पीढ़ी के दिमाग मे ऐसा जहर भर रहे है जो सिर्फ 5 सालो के लिए नही सदा के लिये उसे अपना  मानसिक  गुलाम बना कर के रखेगा ?
अपनी छवि के निर्माण के लिये  पार्टियां अब ‘पब्लिक रिलेशन’  कंपनिया  पी आर को हायर  करती है,  जिनका  का काम होता है ‘ब्रांडिंग और इमेज बिल्डिंग’ जिससे नेताओं या पार्टी की समाज में सकारात्मक छवि बनायी जा सके, और उसके सहारे उसकी ‘चुनावी’ नैय्या पार हो सके! इसकी कार्यप्रणाली की बात करें तो, पीआर कंपनियां जनता  मन में किसी भी पार्टी की सकारात्मक इमेज बनाने में सक्षम होती हैं और इसके लिए, गलत या सही तरीके से  अपना उदेश्य  पूरा करने हेतु   लोगो को  प्रभावित करने वाली चीजों पर उनका ध्यान सर्वाधिक होता है ? ये एजेंसिया अब सबसे ज्यादा सोशल मीडिया को महत्व देती है जहाँ मैन टू मैंन कॉन्टेक्ट सबसे अधिक प्रभावी ढंग से होता है /
उदाहरण के लिए आप देखिए कि नोटबन्दी के बाद 2017 आरबीआई की रिपोर्ट में कहा गया कि 99 फीसदी बैन किए गये  नोट वापस आ गए हैं। इसके बाद नोटबंदी के मकसद को लेकर सरकार पर सवाल उठने शुरू हो गए तुंरन्त सरकार के कई मंत्रियों को नोटबंदी को सफल बताने के कार्य मे लगाया गया और मंत्रियों द्वारा एक के बाद एक ट्वीट किये गये ?  जो  सब  एक सामान थे  अलग अलग नामो से पी आर  एजेंसियों द्वारा जारी किये गए ?  मीडिया  पर से लोगो का विशवास उठता देख  अब सोशल  मीडिया को भो  कब्जे में लिया जा रहा  है , मतलब  देश की जनता  को असली हालातो से रूबरू होने का कोइ चांस नहीं छोड़ा जा रहा ? जो  लोकतंत्र के लिये  सबसे बड़ा खतरा  है ?

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