Friday 12 June 2015

खुद ख़ुशी खुद की ख़ुशी है जीने की जबरजस्ती क्यों !

हर  व्यक्ति  अपने जीवनकाल  में शैशव से योवन तक और योवन से वृध्दा अवस्था तक किसी ने किसी चिंता से ग्रसित रहता है !और इसकी अति तो तब  हो  जाती  है   जब आदमी अपने जीवन के उत्तराध में सबसे ज्यादा चिंतातुर अपनी मौत के लिए होता है ! भगवांन  चलते फिरते  उठाई  लीजे ये चिंता चौबीसो घंटे अशक्त बुजुर्गो को रहती है !

           व्यक्ति अपने जीवन काल में अपनी मेहनत कूबत सामर्थ और मन मर्जी से हर काम करता है जीवन को सजाता संवारता बसाता है ये सब मैने किया है और ऐसा ऐसा में करुगा !लेकिन मरने कीबात आये तो में कुछ नही कर सकता भगवान की इच्छा  क्यों ! सब तेरी इच्छा से लड़का पैदा हो या लड़की और पैदा होने के बाद लड़का बनकर रहना या लड़की सब तकनीक ईजाद करली साइंस और टेक्नोलॉजी ने असीमित  तरक्की  करली पर मौत का आसान तरीका  ईजाद  नही किया और न ही ईच्छा मृत्यु को कानूनी मान्यता मिली !अगर कोई जीना नही चाहे तो जबरजस्ती क्यों  !अरे इतिहास पुराण में जिनका सारी पृथ्वी पर साशन था एक उम् के बाद सबकुछ अपने वारिसों को सोप चलें गये पीछे वालो के लिये जगह खली कर दी कितनी बढ़िया सोच थी उन लोगो की और एक हम है सबकुछ निवृत होने के बाद भी बेकार मोह में बेशर्मो की तरह पड़े है !हाँ तगड़ी पेंशन पाने वालो की तो परिवार में इज्जत और जरूरत है ! लेकिन बाकी अशक्त  बीमार बुजुर्ग परिवार समाज देश और स्वयं पर बोझ बन तिल तिलकर मरने को मजबूर है !

  मेरा  जनप्रतिनिधियो से अनुरोध है यदि सत्तर साल की आजादी के बाद भी देश के लोगो को जीने के लिये बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति न कर सके तो मौत के रास्ते तो रोड़े मत अटकाओ ! इच्छा मृत्यु का कानून पास कर लोगो को चेन से मरने दो !





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