कड़वा सच ?? रीढ़ गर्व खोती जाती है, निर्णय सारे मंद हो रहे , काम धंधे व्यापार व्यवसाय आय के स्त्रोत सब बन्द हो रहे । जीवन चर्या मुश्किल में आम आदमी के हाथ तँग हो रहे , किसान आत्महत्या कर अमर हो रहे, पीड़ित एक करोड़ की बाट जो रहे । युवा बेरोजगारी को रो रहे , मित्रो का भला करने में लूटी पीटी अर्थ व्यवस्था , और इसके जिम्मेदार कांग्रेस के नाम को रो रहे , इन सब का खामियाजा मध्यमवर्गीय ढ़ो रहे , और साशक उन्हें बहलाने फुसलाने के लिए कभी कश्मीरी आतंकवाद , तो कभी भगवा राष्ट्रवाद के रंग में भिगो रहे ,,और पूंजीवादी अर्थ व्यवस्था के जरिये चंद मुठी भर लोग इस देश को अपनी मुठी में करने का स्वपन संजो रहे ,घुट घुट कर जीने वालो , बोलो अब में प्रतिकार करोगे,या आत्महत्या कर मरोगे ।
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