Wednesday 9 November 2016

कड़वा सच ? / भारी करी रे नमोनाथ जानी करि सकियो कोई उंगली तूने घुसेड दियो पुरो हाथ ?

कड़वा सच ? // भारी करी रे नमोनाथ जान नी करि सकियो कोई उंगली तूने घुसेड दियो   पुरो हाथ ? स्वतन्त्र भारत के इतिहास में अच्छे दिन आ गए ? भ्र्ष्टाचार कालेधन और मंहगाई के खिलाफ ये साहसिक फैसला लेने का सामर्थ केवल मोदीजी जैसा लोह पुरुष ही ले सकता है / लोकहित के इस क्रन्तिकारी निर्णय के विरोध में जो उल्लूल जुलूल विधवा विलाप कर गन्दी राजनीती पिरोह रहे वे अपनी बच्ची कुच्ची राजनीतिक जमीन से भी हाथ दो रहे ? सही और अच्छी बात को स्वीकार करने के लिए नैतिक बल चाहिए जो विरोधी दलो में नही है ? जबकि राष्ट्रहित और जनहित के फैसले निहित राजनीतिक स्वार्थ से नही देखे जाते / लेकिन सीमा पर आतंकवाद के खिलाफ और देश में कालाधन और भ्र्ष्टाचार के विरुद्ध मोदीजी द्वारा की जा रही सर्जिकल स्ट्राइक का विरोध राजनितिक सोच का दिवालियापन है ? 

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